Wednesday, May 8, 2013

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मलयालम का साहित्य

मलयालम का साहित्य आठ शताब्दियों से अधिक पुराना है । किन्तु आज तक ऐसा कोई ग्रंथ प्राप्त नहीं हुआ है जो यहाँ के साहित्य की प्रारंभिक दशा पर प्रकाश डालता हो । अतः मलयालम साहित्यिक उद्गम से सम्बन्धित कोई स्पष्ट धारणा नहीं मिलती है । अनुमान है कि प्रारम्भिक काल में लोक साहित्य का प्रचलन रहा होगा । ऐसी कोई रचना उपलब्ध नहीं जिसकी रचना 1000 वर्ष पहले की गई है । दसवीं सदी के उपरान्त लिखे गए अनेक ग्रंथों की प्रामाणिकता को लेकर भी विद्वान एकमत नहीं हैं । केरलीय साहित्य से सामान्यतः मलयालम साहित्य अर्थ लिया जाता है । लेकिन मलयालम साहित्यकारों का तमिल और संस्कृत भाषा विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । केरल के कुछ विद्वानों ने अंग्रेज़ी, कन्नड़, तुळु, कोंकणी, हिन्दी आदि भाषाओं में भी रचना लिखी हैं ।

19 वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक मलयालम साहित्य का इतिहास प्रमुखतया कविता का इतिहास है । साहित्य की प्रारंभिक दशा का परिचय देने वाला काव्य ग्रंथ 'रामचरितम्' है जिसे 13 वीं शताब्दी में लिखा गया बताया जाता है । यद्यपि मलयालम के प्रारंभिक काव्य के रूप में 'रामचरितम्' को माना जाता है फिर भी केरल की साहित्यिक परंपरा उससे भी पुरानी मानी जा सकती है । प्राचीन काल में केरल को 'तमिऴकम्' का भाग ही समझा जाता था । [LOWER – 201] दक्षिण भारत में सर्वप्रथम साहित्य का स्रोत भी तमिऴकम की भाषा प्रस्फुरित हुआ था । तमिल का आदिकालीन साहित्य 'संगम कृतियाँ' नाम से जाना जाता हैं । संगमकालीन महान रचनाओं का सम्बन्ध केरल के प्राचीन चेर-साम्राज्य से रहा है । 'पतिट्टिप्पत्तु' नामक संगमकालीन कृति में दस चेर राजाओं के प्रशस्तिगीत है । 'सिलप्पदिकारं' महाकाव्य के प्रणेता इलंगो अडिगल का जन्म चेर देश में हुआ था । इसके अतिरिक्त तीन खण्डों वाले इस महाकाव्य का एक खण्ड 'वञ्चिक्काण्डम' का प्रतिपाद्य विषय चेरनाड में घटित घटनाएँ हैं । संगमकालीन साहित्यिकों में अनेक केरलीय साहित्यकार हैं ।

मलयालम् भाषा अथवा उसके साहित्य की उत्पत्ति के संबंध में सही और विश्वसनीय प्रमाण प्राप्त नहीं हैं। फिर भी मलयालम् साहित्य की प्राचीनता लगभग एक हजार वर्ष तक की मानी गई हैं। भाषा के संबंध में हम केवल इस निष्कर्ष पर ही पहुँच सके हैं कि यह भाषा संस्कृतजन्य नहीं है - यह द्रविड़ परिवार की ही सदस्या है। परंतु यह अभी तक विवादास्पद है कि यह तमिल से अलग हुई उसकी एक शाखा है, [HIGHER – 363] अथवा मूल द्रविड़ भाषा से विकसित अन्य दक्षिणी भाषाओं की तरह अपना अस्तित्व अलग रखनेवाली कोई भाषा है। अर्थात् समस्या यही है कि तमिल और मलयालम् का रिश्ता माँ-बेटी का है या बहन-बहन का। अनुसंधान द्वारा इस पहेली का हल ढूँढने का कार्य भाषा-वैज्ञानिकों का है और वे ही इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं। जो भी हो, इस बात में संदेह नहीं है कि मलयालम् का साहित्य केवल उसी समय पल्लवित होने लगा था जबकि तमिल का साहित्य फल फूल चुका था। संस्कृत साहित्य की ही भाँति तमिल साहित्य को भी हम मलयालम् की प्यास बुझानेवाली स्त्रोतस्विनी कह सकते हैं। [464]

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