कोल्लम
कोल्लम केरल में
अरब सागर के तट पर अष्टमुदी झील के निकट बसा एक बंदरगाह नगर है। व्यवसायिक दृष्टि से
महत्वपूर्ण इस नगर का प्राचीन काल से विशेष महत्व रहा है। इब्न बतूता ने 14वीं शताब्दी में इसे भारत
के पांच बड़े बंदरगाहों में शुमार किया था। माना जाता है कि इस शहर की स्थापना नौवीं
शताब्दी में सीरिया के व्यापारी सपीर ईसो ने की थी। कोल्लम को यहां की प्राकृतिक खूबसूरती
और विविधताओं के लिए जाना जाता है। समुद्र, झील, मैदान, पहाड़, नदियां, बैकवाटर, जंगल, घने जंगल आदि विविधताएं इसे अन्य
स्थानों से पृथक करती हैं।
कोल्लम की सीमाओं से पत्तनमत्तिट्टा जिला और आलप्पुषा़ जिला उत्तरी ओर,
तथा तिरुअनन्तपुरम
जिला दक्षिणी ओर से लगते हैं। इस मंदिर में पांड्य शैली
का स्पष्ट छाप देखा जा सकता है। मंदिर में 12 से 16वीं के शताब्दी पुराने अभिलेख खुदे
हुए हैं। मंदिर में व्याला दैत्य की नक्कासीदार मूर्ति बनी हुई है। पूनालुर से 80 किमी. दूर स्थित यह एक लोकप्रिय तीर्थस्थल
है। यहां के घने जंगलों के बीचों बीच सास्था मंदिर बना हुआ है। मंदिर में स्थापित सास्था
की मूर्ति ईसा युग से कुछ शताब्दी पूर्व की मानी जाती है। मांडला पूजा और रेवती नामक
दो पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। [LOWER
– 203]
अलुमकडावू कोल्लम शहर से 26 किमी. दूर कोल्लम-अलप्पुजा राष्ट्रीय जलमार्ग पर स्थित है। यहां
का ग्रीन चैनल बेकवाटर रिजॉर्ट देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहता है।
यहां दूर-दूर तक फैला नीला-हरा पानी इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है। सैकड़ों की
तादाद में लगे नारियल के पेड़ ग्रीन चैनल रिजॉर्ट को एक अलग ही पहचान देते हैं। मायानद अपने मंदिरों के लिए चर्चित है। उमयनल्लौर में
बना सुब्रह्मण्य मंदिर यहां के नौ मंदिरों में अपना विशेष स्थान रखता है। माना जाता
है कि यह मंदिर महान हिन्दू दार्शनिक शंकराचार्य को समर्पित है। मायानद कोल्लम से 10
किमी. की दूरी पर है।
कोल्लम से यहां के लिए नियमित बस सेवाएं हैं। इस पवित्र तीर्थस्थल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां के परब्रह्म
मंदिर में कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है, बल्कि यह मंदिर विश्व बंधुत्व को समर्पित है। आचिरा काली
पर्व यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। [HIGHER – 352] चदायमंगलम गांव की इस विशाल चट्टान
का नाम पौराणिक पक्षी जटायु के नाम पर पड़ा। कहा जाता है कि रावण से संघर्ष के दौरान
वह इस पर गिर पड़ा था। जटायु ने सीता को रावण के चुंगल से मुक्त कराने का प्रयास किया
था। [396]
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